Shekhawat Rajput History: शेखावत सूर्यवंशी कछवाह क्षत्रिय वंश की एक शाखा है देशी राज्यों के भारतीय संघ में विलय से पूर्व मनोहरपुर, शाहपुरा, खंडेला, सीकर, खेतडी, बिसाऊ,सुरजगढ़, नवलगढ़, मंडावा, मुकन्दगढ़, दांता, खुड, खाचरियाबास, दूंद्लोद, अलसीसर, मलसिसर, रानोली आदि प्रभाव शाली ठिकाने शेखावतों के अधिकार में थे जो शेखावाटी नाम से पप्रसिद्ध है | वर्तमान में शेखावाटी की भौगोलिक सीमाएं सीकर और झुंझुनू दो जिलों तक ही सीमित है |
आमेर नरेश पज्वन राय जी के बाद लगभग दो सो वर्षों बाद उनके वंशजों में वि.सं. 1423 में राजा उदयकरण आमेर के राजा बने | राजा उदयकरण के पुत्रो से कछवाहों की उदयकरण जी के तीसरे पुत्र बालाजी जिन्हें बरवाडा की 12 गावों की जागीर मिली शेखावतों के आदि पुरुष थे । बालाजी के पुत्र मोकलजी हुए और मोकलजी के पुत्र महान योधा शेखावाटी व शेखावत वंश के प्रवर्तक महाराव शेखा का जनम वि.सं. 1490 में हुआ । वि. सं. 1502 में मोकलजी के निधन के बाद राव शेखाजी बरवाडा व नान के 24 गावों के स्वामी बने। महाराव शेखा खुद को 1471 में स्वतंत्र घोषित कर दिया और उसके वंश के लिए एक अलग रियासत की स्थापना की । राव शेखाजी ने अपने साहस वीरता व सेनिक संगठन से अपने आस पास के गावों पर धावे मारकर अपने छोटे से राज्य को 360 गावों के राज्य में बदल दिया | राव शेखाजी ने नान के पास अमरसर बसा कर उसे अपनी राजधानी बनाया और शिखर गढ़ का निर्माण किया राव शेखाजी के वंशज उनके नाम पर शेखावत कहलाये |
शेखावत वंश (Shekhawat Rajput) में शेखावात उपनाम महाराव शेखाजी के नाम से लिया गया है । जो कि एक महान राजा थे हम दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि महाराव शेखाजी के वंशज ही शेखावत कहलाये ।
शेखावत वंश के लोग सूर्यवंशी कछवाह क्षत्रिय हैं । मगर एक बात ध्यान देने योग्य है कि कछवाह क्षत्रिय एक विस्तृत रूप है और शेखावत वंश उसका एक भाग है । शेखावत वंश के क्षत्रिय भगवान राम के पुत्र कुश के वंशज है । भगवान राम ने कुछ भाग कुश को सौंपा था उसे कुशावती राज्य के नाम से जाना जाता था ।
महाराव शेखा जी के दादाजी आमेर के राजा उदयकरण जी के तिसरे पुत्र थे । राव शेखा जी के पुत्र राव सूजा जी और जगमल जी ने सन् 1503 के लगभग बान्सूर प्रदेश पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया । सूजा जी ने बसई को अपनी राजधानी बनाया और जगमाल जी हाजीपुर चले गए । सन् 1537 में सूजा जी का देहावसान हो गया और राव सूजा जी के पुत्र लूणकर्ण जी, रायसल जी, चाँदा जी और भरूँजी बड़े प्रतापी और वीर हुए थे । शेखावटी के खेतडी, खण्डेला, सीकर, शाहपुरा आदि नगरोँ में लूणकर्ण और रायसल बसई में अब तक खण्डहर पड़ा हुआ है ।
शेखावत वंश ने हमेशा से अपनी कर्मभूमि की रक्षा के लिए अपना बलिदान तक दे दिया । शेखावत वंश (Shekhawat Rajput) के लोगों ने भारत देश के स्वतंत्रता संग्राम में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। जिसमें लाफी लोगों को अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी
शेखावाटी क्षेत्र, शेखावत वंश के प्रवर्तक महाराव शेखाजी को नारी सम्मान व साम्प्रदायिक सौहार्द का प्रतीक माना जाता है | महाराव शेखाजी ने एक स्त्री की मान रक्षा के लिए अपने ही निकट सम्बन्धी गौड़ राजपूतों से पांच वर्ष तक चले खुनी संघर्ष में ग्यारह युद्ध किये थे | और आखिरी युद्ध में विजय के साथ ही अपने प्राणों का उत्सर्ग किया था | इसी उत्सर्ग ने उन्हें नारी अस्मिता और सम्मान का प्रतीक बना दिया |
शेखावत वंश के लोग आज भी देश की राजनीति में प्रत्यछ रूप से भाग लेते हैं । राजस्थान के एक बड़े हिस्से पर शेखावत वंश के लोग प्रभाव डालते हैं । देश में बड़ी संख्या में शेखावत लोग सक्रिय राजनीति का हिस्सा हैं परंतु उनमें से अब तक सबसे सफल पूर्व उपराष्ट्रपति स्वर्गीय श्री भैरों सिंह शेखावत को माना जाता है ।
शेखावत राजपूतो की उत्पत्ति (Shekhawat Rajput)
आमेर नरेश पज्वन राय जी के बाद लगभग दो सो वर्षों बाद उनके वंशजों में वि.सं. 1423 में राजा उदयकरण आमेर के राजा बने | राजा उदयकरण के पुत्रो से कछवाहों की उदयकरण जी के तीसरे पुत्र बालाजी जिन्हें बरवाडा की 12 गावों की जागीर मिली शेखावतों के आदि पुरुष थे । बालाजी के पुत्र मोकलजी हुए और मोकलजी के पुत्र महान योधा शेखावाटी व शेखावत वंश के प्रवर्तक महाराव शेखा का जनम वि.सं. 1490 में हुआ । वि. सं. 1502 में मोकलजी के निधन के बाद राव शेखाजी बरवाडा व नान के 24 गावों के स्वामी बने। महाराव शेखा खुद को 1471 में स्वतंत्र घोषित कर दिया और उसके वंश के लिए एक अलग रियासत की स्थापना की । राव शेखाजी ने अपने साहस वीरता व सेनिक संगठन से अपने आस पास के गावों पर धावे मारकर अपने छोटे से राज्य को 360 गावों के राज्य में बदल दिया | राव शेखाजी ने नान के पास अमरसर बसा कर उसे अपनी राजधानी बनाया और शिखर गढ़ का निर्माण किया राव शेखाजी के वंशज उनके नाम पर शेखावत कहलाये |
शेखावत राजपूतो द्वारा शासित राज्य
शेखावत राजपूत वंश की एक शाखा है | देशी राज्यों के भारतीय संघ में विलय से पूर्व मनोहरपुर, शाहपुरा, खंडेला, सीकर, खेतडी, बिसाऊ,गढ़ गंगियासर,सुरजगढ़, नवलगढ़, खोटिया मंडावा, मुकन्दगढ़, बलौदा(पिलानी), दांता, खुड, खाचरियाबास, दूंद्लोद, अलसीसर, मलसिसर, रानोली आदि प्रभाव शाली ठिकाने शेखावतों के अधिकार में थे जो शेखावाटी नाम से प्रशिद्ध है ।
शेखावत राजवंश की कुलदेवी (Shekhawat Rajput Kuldevi)
अयोध्या राज्य के राजा भगवान श्री रामचन्द्र जी के पुत्र राजा कुश के वंशज कछवाह कहलाते है । जिनका राज्य अयोध्या से चलकर रोहताशगढ (बिहार) में रहा, वहा से चलकर इन्होने अपनी राजधानी नरवर (ग्वालियर राज्य) में बनाई
नरवर (ग्वालियर) राज्य के अंतिम राजा दुलहराय जी ने अपनी राजधानी सर्वप्रथम राजिस्थान में दौसा राज्य में स्थापित की, इस क्षेत्र के कछवाहा शासकों के प्रारम्भिक इतिहास ढूंढाड़ में उनके आगमन, विभिन्न मीणा संस्थानों के शासकों के साथ उनके संघर्ष आदि विविध घटनाओं के बारे में प्रामाणिक जानकारी के संदर्भ में यहां उपयोगी साक्ष्य उपलब्ध हो सकते है । ढूंढाड़ में कछवाहों के आगमन से पूर्व यह स्थान “मॉच” कहलाता था ।
कुछ प्राचीन ख्यातों में इस आशय का उल्लेख है कि दूलहराय ने युद्ध मे सफलता पाने के लिए देवी की आराधना की और कुलदेवी जमवाय माता ने तुष्ट होकर उसे दर्शन दिए। फलतः देवी की प्रेरणा से प्रोत्साहित हो उसने युद्ध किया ।
युद्ध जीतने के बाद दूलहराय ने तदनुसार अपनी कुलदेवी जमवाय और पूर्वज भगवान राम के नाम पर उन्होंने मॉच का नाम बदलकर जमवा रामगढ़ रख दिया | पूर्व युद्ध दूलहराय को जहाँ उसे जमवाय माता के दर्शन हुए थे वहीं पर उन्होंने कुलदेवी जमवाय माता का मन्दिर बनवाया, जो अद्यावधि विद्यमान है |
संभवतः तभी से जमवाय माता कछवाहों की कुलदेवी के रूप में पूजी जाती है। आमेर तथा बाद में जयपुर के राजाओं द्वारा अपने राज्योरोहण के अवसर पर, मुण्डन संस्कार, विवाह तथा अन्य अवसरों पर इनकी पूजा-अर्चना की परिवाटी रही है ।
रामगढ़ की जमवाय माता आमेर-जयपुर के कछवाहा राजवंश की कुलदेवी है। जमवाय माता का प्रसिद्ध मन्दिर जयपुर से लगभग 33 कि.मी. पूर्व में जमवा रामगढ़ की पवर्तमाला के बीच एक पहाड़ी नाके पर रायसर आंधी जाने वाले मार्ग पर स्थित है। रामगढ़ बांध से यह मन्दिर लगभग 2.3 कि.मी. है । जमवाय माता के नाम पर ही यह कस्बा जमवा रामगढ़ कहलाता है।
शेखावत राजपूतो की प्रमुख शाखाये
टकनेत शेखावत, रतनावत शेखावत, मिलकपुरिया शेखावत, खेज्डोलिया शेखावत, सातलपोता शेखावत, रायमलोत शेखावत, तेजसी के शेखावत, सहसमल्जी का शेखावत, जगमाल जी का शेखावत, सुजावत शेखावत, लुनावत शेखावत, उग्रसेन जी का शेखावत, रायसलोत शेखावत, लाड्खानी, रावजी का शेखावत, ताजखानी शेखावत, परसरामजी का शेखावत, हरिरामजी का शेखावत, गिरधर जी का शेखावत, भोजराज जी का शेखावत, गोपाल जी का शेखावत, भेरू जी का शेखावत, चांदापोता शेखावत |
महाराव शेखा जी के बारह बेटे थे। जिन में से तीन बेटे भरतजी, तिलोकजी (त्रिलोकजी), प्रतापजी निसंतान थे । बाकि नौ बेटों से पांच शाखाएँ चली जो इस प्रकार है (Shekhawat Rajput) –
टकनेत शेखावत :
दुर्गाजी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
शेखा जी के ज्येष्ठ पुत्र दुर्गा जी के वंशज टकनेत शेखावत कहलाये | खोह, पिपराली, गुंगारा आदि इनके ठिकाने थे जिनके लिए यह दोहा प्रसिद्ध है –
खोह खंडेला सास्सी गुन्गारो ग्वालेर |
अलखा जी के राज में पिपराली आमेर ||
टकनेत शेखावत शेखावटी (Shekhawat Rajput) में त्यावली, तिहाया, ठेडी, मकरवासी, बारवा, खंदेलसर, बाजोर व चुरू जिले में जसरासर, पोटी, इन्द्रपुरा, खारिया, बड्वासी, बिपर आदि गावों में निवास करते है |
रतनावत शेखावत :
रतनाजी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
महाराव शेखाजी के दुसरे पुत्र रतना जी के वंशज रतनावत शेखावत कहलाये इनका स्वामित्व बैराठ के पास प्रागपुर व पावठा पर था | हरियाणा के सतनाली के पास का इलाका रतनावातों का चालीसा कहा जाता है |
यह कछवाहोँ की उप शाखा रतनावत नरुका, रतनावत शेखावत खांप से बिलकुल अलग है। रतनावत कछवाह व रतनावत शेखावत में भेद या अन्तर ? कुछ लोग रतनावत कछवाह व रतनावत शेखावत को एक ही समझ लेतें हैं क्यों की दोनों में पीढ़ी व वसाजों का नाम संयोग से एक जैसा ही है जिसमे भेद इस प्रकार है –
उदयकरण जी [उदयकर्ण] – उदयकरण जी राजा जुणसी जी के दूसरे पुत्र थे । राजा उदयकरणजी आमेर के तीसरे राजा थे जिनका शासनकाल 1366 से 1388 में रहा है । राजा उदयकरणजी की म्रत्यु 1388 में हुयी थी । उदयकरजी की म्रत्यु 1388 में हुयी थी । उदयकरजी के आठ पुत्र थे –
- – राव नारोसिंह [राजा नरसिंह, नाहरसिंह देवजी]
- – राव बरसिंह » मेराज जी (मेहराज) » नरुजी – दासासिंह (दासा) » रतनसिंह (रतनजी) [रतनसिंह (रतन जी) के वंसज रतनावत कछवाह कहतें हैं, जो नरुका कछवाह की ही उप शाखा है।]
- – राव बालाजी » राव मोकलजी » शेखाजी » रतनाजी [रतनाजी के वंसज रतनावत शेखावत] (Shekhawat Rajput)
- – राव शिवब्रह्म
- – राव पातालजी
- – राव पीपाजी
- – राव पीथलजी
- – राव नापाजी (राजाउदयकरणजी के आठवें पुत्र)
मिलकपुरिया शेखावत :
आभाजी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
अचलाजी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
पूरणजी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
शेखा जी के पुत्र आभाजी, पुरन्जी, अचलजी के वंशज ग्राम मिलकपुर में रहने के कारण मिलकपुरिया शेखावत कहलाये इनके गावं बाढा की ढाणी, पलथाना, सिश्याँ, देव गावं, दोरादास, कोलिडा, नारी व श्री गंगानगर के पास मेघसर है |
खेज्डोलिया शेखावत :
रिड़मलजी [रिदमल जी] « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
कुम्भा जी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
भारमलजी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
शेखाजी (Shekhawat Rajput) के पुत्र रिदमल जी वंशज खेजडोली गावं में बसने के कारण खेज्डोलिया शेखावत कहलाये | आलसर, भोजासर छोटा, भूमा छोटा, बेरी, पबाना, किरडोली, बिरमी, रोलसाहब्सर, गोविन्दपुरा, रोरू बड़ी, जोख, धोद, रोयल आदि इनके गावं है |
रायमलोत शेखावत :
राव रायमलजी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
शेखाजी के सबसे छोटे पुत्र रायमल जी के वंशज रायमलोत शेखावत कहलाते है ।
महाराव शेखाजी के बेटों के बेटों [पोतों] के वंसजों से शेखावतों की शाखाएँ –
सातलपोता शेखावत :
संतालजी « कुम्भाजी « शेखाजी
शेखाजी के पुत्र कुम्भाजी के वंशज सातलपोता शेखावत कहलाते है |
बाघावत शेखावत :
बाघाजी « भारमलजी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
शेखाजी के पुत्र भारमल जी के बड़े पुत्र बाघा जी वंशज बाघावत शेखावत कहलाते है | इनके गावं जय पहाड़ी, ढाकास, Sahanusar, गरडवा, बिजोली, राजपर, प्रिथिसर, खंडवा, रोल आदि है |
सुजावत शेखावत :
सूजा जी [सूरजमल जी] « राव रायमल जी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
सूजा रायमलोत के पुत्र सुजावत शेखावत कहलाये | सुजाजी रायमल जी के ज्यैष्ठ पुत्र थे जो अमरसर के राजा बने |
महाराव शेखाजी के पड़पोतो (Shekhawat Rajput) की शाखाये –
लुनावत शेखावत :
लुणकरणजी « राव सुजाजी « राव रायमलजी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
लुन्करण जी सुजावत के वंशज लुन्करण जी का शेखावत कहलाते है | इन्हें लुनावत शेखावत भी कहते है, इनकी भी कई शाखाएं है |
रायसलोत शेखावत :
रायसलजी « राव सुजाजी « राव रायमलजी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
लाम्याँ की छोटीसी जागीर से खंडेला व रेवासा का स्वतंत्र राज्य स्थापित करने वाले राजा रायसल दरबारी के वंशज रायसलोत शेखावत कहलाये | राजा रायसल के 12 पुत्रों में से सात प्रशाखाओं का विकास हुआ |
गोपाल जी का शेखावत :
गोपालजी « राव सुजाजी « राव रायमलजी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
गोपालजी सुजावत के वंशज गोपालजी का शेखावत कहलाते है |
भेरू जी का शेखावत :
भरूँजी « राव सुजाजी « राव रायमलजी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
भेरू जी सुजावत के वंशज भेरू जी का शेखावत कहलाते है |
भेरुजी के पाँच पुत्र थे –
- नरहरदास जी
- कुंवरसल जी
- बारीसाल जी
- सांगा जी
- भारमल जी
नरहरदास – भैरुजी के पुत्र नरहरदास के 18 पुत्र हुये –
- कवरसी
- कशोदास
- राजसी
- जगन्नाथ
- जसवंत
- जगरूप
- जैतसी
- रायसी
- नाहरखाँ (नाहर सिंह)
- गोरधन
- बालदास
- किशनसिंह
- मुकुन्दसिंह
- हरीसिंह
- रघुनाथ सिंह
- भीमसिंह
- रामसिंह
- नारायणसिंह
चांदाजी का शेखावत : चांदावत शेखावत
चांदाजी « राव सुजाजी « राव रायमलजी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
चांदाजी के वंशज चांदाजी का शेखावत – [चांदावत शेखावत] कहलाते हैं । चांदाजी अमरासर के राव सुजाजी के पुत्र व राव रायमलजी के पोते थे, तथा महाराव शेखाजी (Shekhawat Rajput) के पड़ पोते थे ।
चांदापोता शेखावत :
चांदाजी के वंसज « चांदाजी « राव सुजाजी « राव रायमलजी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
रामजी का शेखावत :
रामजी « राव सुजाजी « राव रायमलजी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
लाड्खानी शेखावत :
लाडाजी « रायसल जी « राव सुजाजी « राव रायमलजी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
राजा रायसल जी के जेस्ठ पुत्र लाल सिंह जी के वंशज लाड्खानी कहलाते है | दान्तारामगढ़ के पास ये कई गावों में आबाद है यह क्षेत्र माधो मंडल के नाम से भी प्रशिध है पूर्व उप राष्ट्रपति श्री भैरों सिंह जी इसी वंश से है |
ताजखानी शेखावत :
ताजाजी « रायसल जी « राव सुजाजी « राव रायमलजी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
राजा रायसल जी के पुत्र तेजसिंह के वंशज कहलाते है इनके गावं चावंङिया, भोदेसर, छाजुसर आदि है |
परसरामजी का शेखावत :
परसरामजी « रायसल जी « राव सुजाजी « राव रायमलजी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
राजा रायसल जी के पुत्र परसरामजी के वंशज परसरामजी का शेखावत कहलाते है |
रावजी का शेखावत [त्रिमलजी (तिरमलजी) का शेखावत ] :
त्रिमलजी [तिरमलजी] « रायसल जी « राव सुजाजी « राव रायमलजी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
राजा रायसल जी के पुत्र तिर्मल जी के वंशज रावजी का शेखावत कहलाते है | इनका राज्य सीकर, फतेहपुर, लछमनगढ़ आदि पर था |
गिरधर जी का शेखावत :
गिरधरदासजी « रायसल जी « राव सुजाजी « राव रायमलजी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
राजा गिरधर दास राजा रायसलजी के बाद खंडेला के राजा बने इनके वंशज गिरधर जी का शेखावत कहलाये, जागीर समाप्ति से पहले खंडेला, रानोली, खूड, दांता आदि ठिकाने इनके आधीन थे |
भोजराज जी का शेखावत :
भोजराजजी « रायसल जी « राव सुजाजी « राव रायमलजी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
राजा रायसल के पुत्र और उदयपुरवाटी के स्वामी भोजराज के वंशज भोजराज जी का शेखावत कहलाते है ये भी दो उपशाखाओं के नाम से जाने जाते है, 1-शार्दुल सिंह का शेखावत, 2-सलेदी सिंह का शेखावत |
भोजराज जी के दो पुत्र थे – टोडरमलजी, जगरामसिंह |
टोडरमलजी – आमेर (जयपुर) के क्षत्रिय वंश [कछवाह] से अलग हुई एक शाखा शेखावत वंश महाराव [शेखाजी के वंसज] जिसमें जन्में भोजराज जी के जेष्ठ पुत्र टोडरमल थे । टोडरमल के अधिकार में उदयपुर का परगना यथावत बना रहा। ठाकुर टोडरमल अपने समय के प्रसिद्ध दातार हुये है।
“दोय उदयपुर ऊजला ,दोय दातार अटल्ल”
दोय उदयपुर उजला , दो ही दातार अव्वल।
एकज राणो जगत सिंह , दूजो टोडरमल ।।
टोडरमलजी के 6 पुत्र हुए |
- पुरषोतम सिंघजी
- भीम सिंघजी
- स्याम सिंघजी
- सुजाण सिंह
- झुंझार सिंह
- जगतसिंह
जगरामसिंह – भोजराज जी के पुत्र जगरामसिंह थे | जगरामसिंह के वंसज जगारामोत शेखावत कहलातें हैं । भोजराज जी के पुत्र जगरामसिंह थे, जगरामसिंह के पुत्र गोपालसिंह हुए, गोपालसिंह के पुत्र सालेहदीसिंह थे।
गोपालसिंह – जगरामसिंह के पुत्र गोपालसिंह ने केध [Kedh] गांव बसाया ।
सालेहदीसिंह – गोपालसिंह के पुत्र सालेहदीसिंह थे । ठाकुर सालेहदीसिंह ने नंगली और मुवारी [मोहनवाड़ी] गांव बसाया ।
- अमरसिंह – सालेहदीसिंह के पुत्र अमरसिंह और रामसिंह ने खिरोड़ गांव बसाया ।
- रामसिंह – सालेहदीसिंह के पुत्र अमरसिंह और रामसिंह ने खिरोड़ गांव बसाया ।
शार्दुलसिंह – जगरामसिंह भोजराज जी के पुत्र थे, जगरामसिंह के वंसज जगारामोत शेखावत (Shekhawat Rajput) कहलातें हैं, जगरामसिंह के पुत्र शार्दुलसिंह थे –
शार्दुलसिंहके छह पुत्र हुए थे –
- जोरावरसिंह
- किशनसिंह
- बहादुरसिंह
- अखेसिंह
- नवलसिंह
- केसरीसिंह
ठाकुर जोरावरसिंह के वंसज : चौकड़ी जोरावरसिंह का जन्म शार्दुलसिंह की पहली पत्नी सहजकंवर [बिकीजी] की कोख से गांव कांट, जिला – झुंझुनूं , राजस्थान (Shekhawati) में हुवा था | उन्होंने जोरावरगढ़ फोर्ट बनवाया था |
जोरावरसिंह (झुंझुनू) के पांच पुत्र हुए –
- बखतसिंह – बखतसिंह ने 1745 में चौकड़ी गांव बसाया ।
- महासिंह – जोरावरसिंह झुंझुनू के पुत्र महासिंह ने 1745 में मलसीसर गांव बसाया ।
- दौलतसिंह – जोरावरसिंह झुंझुनू के तीसरे पुत्र दौलतसिंह नें 1751/1791 मंड्रेला गांव बसाया ।
- सालिमसिंग – जोरावरसिंह झुंझुनू के पुत्र सालिमसिंग ने टाइ व सिरोही गांव बसाया ।
- कीरतसिंह – जोरावरसिंह झुंझुनू के पुत्र कीरतसिंह ने डाबड़ी गांव बसाया ।
रणजीतसिंह – रणजीतसिंह दौलतसिंह के पुत्र व जोरावरसिंह के पोते थे, रणजीतसिंह ने चनाना गांव बसाया था।
किशनसिंह – (ठाकुर किशन सिंह के वंसज): खेतड़ी : किशनसिंह का जन्म शार्दुलसिंह की तीसरी पत्नी बखतकंवर की कोख से हुवा था | किशनसिंह का जन्म 1709, में हुवा था । खेतड़ी नगर 1742 में ठाकुर किशनसिंह ने बसाया था | जो प्राचीन रियासत जयपुर का सीकर के बाद खेतड़ी नगर दूसरा सबसे बड़ा ठिकाना था । किशन सिंह जी के 6 पुत्र हुए थे |
- भोपालसिंह – ठाकुर किशनसिंह के पुत्र भोपालसिंह ने 1970 में भोपालगढ़ फोर्ट, बागोर फोर्ट’ और खेतड़ी महल बनवाये थे । किशनसिंह के पुत्र भोपालसिंह के दो पुत्र हुए – पहाड़सिंह, बाघसिंह |
- छत्तरसिंह – ठाकुर किशनसिंह के पुत्र छत्तरसिंह अलसीसर और उसके किले [गढ़] का पहली बार निर्माण 1853.में किया था | उसके बाद अलसीसर की दूसरी बार बसावट ठाकुर गणपतसिंह ने 1853.में की थी ।
- रामनाथसिंह – ठाकुर किशनसिंह के पुत्र ठाकुर रामनाथसिंह ने हीरवा गांव बसाया था |
- मेहताबसिंह – सिगरा गांव ठाकुर किशनसिंह के पुत्र मेहताबसिंह ने बसाया था ।
- दुल्हासिंह – अरूका गांव ठाकुर किशनसिंह के पुत्र ठाकुर दुल्हासिंह ने 1796.बसाया था ।
- बदनसिंह – बदनगढ़ ठिकाने की स्थापना ठाकुर किशनसिंह के पुत्र ठाकुर बदनसिंह ने की थी ।
बहादुरसिंह – [युवा अवस्था में म्रत्यु] बहादुरसिंह का जन्म शार्दुलसिंह की तीसरी पत्नी बखतकंवर की कोख से हुवा था | बहादुरसिंह का जन्म 1712 में हुवा था और म्रत्यु 1732 में ।
अखेसिंह का जन्म शार्दुलसिंह की तीसरी पत्नी बखतकंवर की कोख से हुवा था | अखेसिंह का जन्म 1713 में हुवा था | और म्रत्यु 1750 में इन के कोई सन्तान नहीं थी ।
नवलसिंह – (ठाकुर नवलसिंह के वंसज): नवलगढ़ : नवलसिंह का जन्म शार्दुलसिंह की तीसरी पत्नी बखतकंवर की कोख से हुवा था | नवलसिंह का जन्म 1715 में हुवा था और म्रत्यु 14 फ़रवरी 1780 में । इन के वंसज नवलगढ़, महनसर, दोरासर, मुकुंदगढ़, नरसिंघानी,बलूंदा और मंडावा आदि में । नवलगढ़ की स्थापना रोहिली गांव के पास ठाकुर नवलसिंह ने 1737 में की थी |
- नाहरसिंह – नवलगढ़ के ठाकुर नवलसिंह के पुत्र नाहरसिंह ने महनसर गांव 1768 में बसाया था |
- भवानीसिंह – ठाकुर नाहरसिंह के पुत्र भवानीसिंह ने परसरामपुरा, ठिकाने का निर्माण किया था | और वंहाँ पर एक छोटा किले [गढ़] का निर्माण भी करवाया था ।
- मुकंदसिंह – नवलगढ़ के ठाकुर नाथूसिंह के पुत्र मुकंदसिंह ने 1859 में मुकुंदगढ़ ठिकाने का निर्माण किया था ।
- प्रेमसिंह – दोरासर और पचेरी, ठिकाने का निर्माण प्रेमसिंह ने किया था ।
केशरीसिंह – (ठाकुर केसरीसिंह के वंसज) डूंडलोद : शार्दुलसिंह के सबसे छोटे पुत्र यानि छठें पुत्र केशरीसिंह का जन्म शार्दुलसिंह की तीसरी पत्नी बखतकंवर की कोख से हुवा था | नवलसिंह का जन्म 1728 में हुवा था और म्रत्यु 1768 में ।
झुंझार सिंह – झुंझार सिंह टोडरमल जी पुत्रो में सबसे प्रतापी जुन्झार सिंह थे । जिन्होंने पृथक गुढा गाँव बसाया । भोजराजजी के पोते जुझारसिंहजी के बेटों से भी दो उपशाखाएँ निकली हैं – 1. गौड़ जी के शेखावत, 2. वीदावतजी के शेखावत |
गौड़ जी के शेखावत :
जुझारसिंहजी « टोडरमलजी « भोजराजजी « रायसलजी « राव सुजाजी « राव रायमलजी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
वीदावत जी के शेखावत :
जुझारसिंहजी « टोडरमलजी « भोजराजजी « रायसलजी « राव सुजाजी « राव रायमलजी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
वीरभानजी का शेखावत :
वीरभानजी का « रायसल जी « राव सुजाजी « राव रायमलजी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
हरजी का शेखावत [हररामजी का] :
हरजी [हररामजी] « रायसल जी « राव सुजाजी « राव रायमलजी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
तेजसी के शेखावत :
तेजसी « राव रायमलजी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
रायमल जी पुत्र तेज सिंह के वंशज तेजसी के शेखावत (Shekhawat Rajput) कहलाते है ये अलवर जिले के नारायणपुर, गाड़ी मामुर और बान्सुर के परगने में के और गावौं में आबाद है |
सहसमल्जी का शेखावत :
सहसमलजी « राव रायमलजी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
रायमल जी के पुत्र सहसमल जी के वंशज सहसमल जी का शेखावत कहलाते है | इनकी जागीर में सांईवाड़ थी |
जगमाल जी का शेखावत :
जगमालजी « राव रायमलजी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
जगमाल जी रायमलोत के वंशज जगमालजी का शेखावत कहलाते है | इनकी 12 गावों की जागीर हमीरपुर थी जहाँ ये आबाद है |
दुदावत शेखावत :
दुदाजी « जगमालजी « राव रायमलजी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
सीहा के शेखावत :
सीहा « राव रायमलजी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
सुरताण के शेखावत :
सुरताण « राव रायमलजी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
नरहरदासोत शेखावत :
नरहरदासजी « भरूँजी « राव सुजाजी « राव रायमलजी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
उग्रसेन जी का शेखावत :
उग्रसेनजी « नरसिंहदासजी « लुणकरणजी « राव सुजाजी « राव रायमलजी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
अचल्दासजी का शेखावत [अचलदासोत शेखावत] :
अचलदास जी « भगवानदासजी « लुणकरणजी « राव सुजाजी « राव रायमलजी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
सावलदासजी का शेखावत :
सांवलदासजी « लुणकरणजी « राव सुजाजी « राव रायमलजी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
मनोहर दासोत शेखावत :
मनोहरदास « लुणकरणजी « राव सुजाजी « राव रायमलजी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
जगारामोत शेखावत :
जगरामसिंह « भोजराजजी « रायसल जी « राव सुजाजी « राव रायमलजी « शेखाजी « राव मोकलजी « राव बाला जी « उदयकरणजी
शेखावत राजवंश के प्रमुख शाशक
शेखा जी के वंशज शेखावत कहलाते हैँ । शेखा जी को महाराव की उपाधि थी इसलिए महाराव शेखा जी के नाम से जानें जाते थे | महाराव शेखा जी राव मोकल जी के पुत्र व बाला जी के पौत्र थे । महाराव शेखा जी के दादाजी आमेर के राजा उदयकरण जी के तिसरे पुत्र थे।
शेखावत कछवाहोँ का पीढी क्रम इस प्रकार है
शेखा जी « राव मोकल जी « बाला जी « उदयकरण जी « जुणसी जी (जुणसी, जानसी, जुणसीदेव जी, जसीदेव) « कुन्तलदेव जी « किलहन देवजी (कील्हणदेव,खिलन्देव) « राज देवजी « राव बयालजी (बालोजी) « मलैसी देव « पुजना देव (पाजून, पज्जूणा) « जान्ददेव « हुन देव « कांकल देव « दुलहराय जी (ढोलाराय) « सोढ देव (सोरा सिंह) « इश्वरदास (ईशदेव जी)
[01] – भगवान श्री राम – भगवान श्री राम के बाद कछवाहा (कछवाह) क्षत्रिय राजपूत राजवंश (Shekhawat Rajput) का इतिहास इस प्रकार भगवान श्री राम का जन्म ब्रह्माजी की 67वीँ पिढी मेँ और ब्रह्माजी की 68वीँ पिढी मेँ लव व कुश का जन्म हुआ । भगवान श्री राम के दो पुत्र थे –
- – लव
- – कुश
जब राम ने वानप्रस्थ लेने का निश्चय कर भरत का राज्याभिषेक करना चाहा तो भरत नहीं माने । अत: दक्षिण कोसल प्रदेश (छत्तीसगढ़) में कुश और उत्तर कोसल में लव का अभिषेक किया गया ।
राजा लव से राघव राजपूतों का जन्म हुआ जिनमें बर्गुजर, जयास और सिकरवारों का वंश चला । इसकी दूसरी शाखा थी सिसोदिया राजपूत वंश की जिनमें बैछला (बैसला) और गैहलोत (गुहिल) वंश के राजा हुए । कुश से कुशवाह (कछवाह) राजपूतों का वंश चला । राम के दोनों पुत्रों में कुश का वंश आगे बढ़ा ।
[02] – कुश – भगवान श्री राम के पुत्र लव, कुश हुये ।
[03] – अतिथि – कुश के पुत्र अतिथि हुये ।
[04] – वीरसेन (निषध) – अतिथि के पुत्र वीरसेन जो कि निषध देश के एक राजा थे । भारशिव राजाओं में वीरसेन सबसे प्रसिद्ध राजा था। वीरसेन (निषध) के एक पुत्री व दो पुत्र हुए थे –
- – मदनसेन (मदनादित्य) – (निषध देश के राजा वीरसेन का पुत्र) सुकेत के 22 वेँ शासक राजा मदनसेन ने बल्ह के लोहारा नामक स्थान मे सुकेत की राजधानी स्थापित की ।
- – राजा नल – निषध देश के राजा वीरसेन का पुत्र |
- – मनोरमा (पुत्री) – अयोध्या में भगवान राम से कुछ पीढ़ियों बाद ध्रुवसंधि नामक राजा हुए । उनकी दो स्त्रियां थीं । पट्टमहिषी थी कलिंगराज वीरसेन की पुत्री मनोरमा और छोटी रानी थी उज्जयिनी नरेश युधाजित की पुत्री लीलावती ।
[05] – राजा नल – (राजा वीरसेन का पुत्र राजा नल) निषध देश के राजा वीरसेन के पुत्र, राजा नल का विवाह विदर्भ देश के राजा भीमसेन की पुत्री दमयंती के साथ हुआ था। नल-दमयंती – विदर्भ देश के राजा भीम की पुत्री दमयंती और निषध के राजा वीरसेन के पुत्र नल राजा नल स्वयं इक्ष्वाकु वंशीय थे ।
ब्रह्माजी की 71वीँ पिढी मेँ जन्में राजा नल से इतिहास में प्रसिद्ध क्षत्रिय सूर्यवंशी राजपूतों की एक अलग शाखा चली जो कछवाह के नाम से विख्यात है ।
[06] – ढोला – राजा नल-दमयंती का पुत्र ढोला जिसे इतिहास में साल्ह्कुमार के नाम से भी जाना जाता है का विवाह राजस्थान के जांगलू राज्य के पूंगल नामक ठिकाने की राजकुमारी मारवणी से हुआ था । जो राजस्थान के साहित्य में ढोला-मारू के नाम से प्रख्यात प्रेमगाथाओं के नायक है ।
[07] – लक्ष्मण – ढोला के लक्ष्मण नामक पुत्र हुआ ।
[08] – भानु – लक्ष्मण के भानु नामक पुत्र हुआ ।
[09] – बज्रदामा – भानु के बज्रदामा नामक पुत्र हुआ, भानु के पुत्र परम प्रतापी महाराजा धिराज बज्र्दामा हुवा | जिस ने खोई हुई कछवाह राज्यलक्ष्मी का पुनः उद्धारकर ग्वालियर दुर्ग प्रतिहारों से पुनः जित लिया ।
[10] – मंगल राज – बज्रदामा के मंगल राज नामक पुत्र हुआ । बज्र्दामा के पुत्र मंगल राज हुवा जिसने पंजाब के मैदान में महमूद गजनवी के विरुद्ध उतरी भारत के राजाओं के संघ के साथ युद्ध कर अपनी वीरता प्रदर्शित की थी । मंगल राज के मंगल राज के 2 पुत्र हुए |
- – किर्तिराज (बड़ा पुत्र) – किर्तिराज को ग्वालियर का राज्य मिला था ।
- – सुमित्र (छोटा पुत्र) – सुमित्र को नरवर का राज्य मिला था । इस महल का नाम राजा नल के नाम पर रखा गया है | जिनके और दमयंती की प्रेमगाथाएं महाकाव्य महाभारत में पढ़ने को मिलती हैं । इस नरवर राज्य को ‘निषाद राज्य भी कहते थे, जहां राजा वीरसेन का शासन था । उनके ही पुत्र का नाम राजा नल था ।
[11] – सुमित्र – मंगल राज का छोटा पुत्र सुमित्र था ।
[12] – ईशदेव जी – सुमित्र के ईशदेव नामक पुत्र हुआ । इश्वरदास (ईशदेव जी) 966 – 1006 ग्वालियर (मध्य प्रदेश) के शासक थे ।
[13] – सोढदेव – इश्वरदास (ईशदेव जी) के सोढ देव (सोरा सिंह) नामक पुत्र हुआ |
[14] – दुलहराय जी (ढोलाराय) – सोढदेव जी के दुलहराय जी (ढोलाराय) नामक पुत्र हुआ । दुलहराय जी (ढोलाराय) (1006-36) आमेर (जयपुर) के शासक थे । दुलहराय जी (ढोलाराय) के 3 पुत्र हुये –
- – कॉकिलदेव (काँखल जी, कांकल देव) – (1036-38) आमेर (जयपुर) के शासक थे ।
- – डेलण जी
- – वीकलदेव जी
[15] – कॉकिलदेव (काँखल जी, कांकल देव) – कॉकिलदेव (काँखल जी, कांकल देव) – (1036-38) आमेर (जयपुर) के शासक थे । कॉकिलदेव (काँखल जी, कांकल देव) के पांच पुत्र हुए –
- – अलघराय जी
- – गेलन जी
- – रालण जी
- – डेलण जी
- – हुन देव
[16] – हुन देव – कांकल देव (काँखल देव) के हुन देव नामक पुत्र हुआ । हुन देव (1038-53) आमेर (जयपुर) के शासक थे ।
[17] – जान्ददेव – हुन देव के जान्ददेव नामक पुत्र हुआ । जान्ददेव (1053 – 1070) आमेर (जयपुर) के शासक थे ।
[18] – पंञ्जावन – जान्ददेव के पंञ्जावन (पुजना देव, पाजून, पज्जूणा) नामक पुत्र हुआ । पंञ्जावन (पुजना देव,पाजून, पज्जूणा) (1070 – 1084) आमेर (जयपुर) के शासक थे ।
[19] – मलैसी देव – राजा मलैसिंह देव पंञ्जावन (पुंजदेव, पुजना देव, पाजून, पज्जूणा) का पुत्र था | तथा मलैसिंह दौसा का सातवाँ राजा था | मलैसी देव दौसा के बाद राजा मलैसिंह देव 1084 से 1146 तक आमेर (जयपुर) के शासक थे | भारतीय इतिहास में मलैसी को मलैसी, मलैसीजी, मलैसिंहजी आदी नामों से भी जाना एंव पहचाना जाता है | मगर इन का असली नाम मलैसी देव था । जैसा कि सभी को मालुम है सुंन्दरता के वंश में होकर (मलैसीजी मलैसिंहजी) ने बहुतसी शादीयाँ करी थी । जिन में राजपूत खानदान से बाहर अन्य खानदान एंव अन्य जातीयों में करी थी | (Shekhawat Rajput)
मलैसी देव ने राजपूत खानदान से बाहर अन्य खानदान एंव अन्य जातीयों में शादीयाँ करी थी | इन सब अन्य जातीयों से पुत्र –
उपरोंक्त ये सभी पाँचो पुत्र अपने व्यवसाय में लग गये जिनकी आज राजपूतों से एक अलग जाती बन गयी है |
- – तोलाजी – टाक दर्जी छींपा
- – बाघाजी – रावत बनिया
- – भाण जी – डाई गुजर
- – नरसी जी – निठारवाल जाट
- – रतना जी – सोली सुनार,आमेरा नाई
- – जैतल जी (जीतल जी) – जैतल जी (जीतल जी) (1146 – 1179) आमेर (जयपुर) के शासक थे
- – राव बयालदेव
[20] – राव बयालदेव – राजा मलैसिंह देव के पुत्र राव बयालदेव ।
[21] – राज देवजी – राव बयालदेव के पुत्र राज देवजी । राज देवजी (1179 – 1216) आमेर (जयपुर) के शासक थे । राजा राव बयालजी (बालोजी) का पुत्र राजा देव जी दौसा का नौँवा राजा बना जिसका कार्यकाल 1179-1216 तक । राजा देव जी के ग्यारह पुत्र थे –
- – बीजलदेव जी
- – किलहनदेव जी
- – साँवतसिँह जी
- – सिहा जी
- – बिकसी (बिकासिँह जी, बिकसिँह जी विक्रमसी)
- – पाला जी (पिला जी)
- – भोजराज जी
- – राजघरजी (राढरजी)
- – दशरथ जी
- – राजा कुन्तलदेव जी
[22] – कुन्तलदेव जी – कुन्तलदेव जी 1276 से 1317 तक आमेर (जयपुर) के शासक थे । राजा कुन्तलदेव जी के ग्यारह पुत्र थे –
- – बधावा जी
- – हमीर जी (हम्मीर देव जी)
- – नापा जी
- – मेहपा जी
- – सरवन जी
- – ट्यूनगया जी
- – सूजा जी
- – भडासी जी
- – जीतमल जी
- – खींवराज जी
- – जोणसी
[23] – जोणसी – राजा जोणसी कुन्तलदेव जी के पुत्र थे | इन को को जुणसी जी, जुणसी, जानसी, जुणसी देव जी, जसीदेव आदि कई नामों से पुकारा जाता था | आमेर के 13 वें शासक राजा जुणसी देव के चार पुत्र थे –
- – जसकरण जी
- – उदयकरण जी
- – कुम्भा जी
- – सिंघा जी
[24] – उदयकरण जी – उदयकरण जी [उदयकर्ण] – उदयकरण जी राजा जुणसी जी के दूसरे पुत्र थे । राजा उदयकरणजी आमेर के तीसरे राजा थे | जिनका शासनकाल 1366 से 1388 में रहा है । राजा उदयकरणजी की म्रत्यु 1388 में हुयी थी | उदयकरजी के आठ पुत्र थे –
- – राव नारोसिंह (राजा नरसिंह, नाहरसिंह देवजी)
- – राव बरसिंह
- – राव बालाजी
- – राव शिवब्रह्म
- – राव पातालजी
- – राव पीपाजी
- – राव पीथलजी
- – राव नापाजी (राजाउदयकरणजी के आठवें पुत्र)
[25] – बाला जी – बाला जी आमेर के राजा उदयकरण जी के तिसरे पुत्र थे ।
[26] – राव मोकल जी – राव मोकल जी बाला जी के पुत्र थे ।
[27] – महाराव शेखा जी (Shekhawat Rajput) – महाराव शेखा जी राव मोकल जी के पुत्र व बाला जी के पौत्र थे । शेखा जी के वंशज शेखावत कहलाते हैँ । शेखा जी को महाराव की उपाधि थी इसलिए महाराव शेखा जी के नाम से जानें जाते थे | महाराव शेखा जी राव मोकल जी के पुत्र व बाला जी के पौत्र थे । महाराव शेखा जी के दादाजी आमेर के राजा उदयकरण जी के तिसरे पुत्र थे ।
शेखावत राजपूत गोत्र (Shekhawat Rajput Gotra)
- कुल – कछवाहा
- वंश – सूर्य वंश
- गौत्र – मानव
- कुलदेवी – जमवाय माता (रामगढ़, जयपुर)
- इष्टदेवी – जीणमाता जी
- कुलदेव – रामचन्द्र जी
- इष्टदेव – गोपीनाथ जी
- वेद – सामवेद
- वृक्ष – वट (बड़)
- गायत्री – ब्रह्मयज्ञोपवीत
- नदी – सरयू
- प्रवर – मानव, वशिष्ठ, ब्रहस्पति
- शाखा – मध्यान्दिनी
- सूत्र – गोभिल गृह्मसूत्र
- नगारा – यमुना प्रसाद
- निशान – पचरंगा
- निकास – अयोध्या से
- छत्र – श्वेत
- पक्षी – कबूतर
- धनुष – सारंग
- घोड़ा – उच्चश्रेवा
- पुरोहित – खाथड़िया पारीक
- हाथी – ऐरावत
- धोती – पीताम्बर
- माला – वैजयन्ती
- कंठी – भगोती
- तिलक– केशर
- गुरू – वशिष्ट जी
- धूणी – चतरकोट
- भोजन – सूर्त
- पहाड़ – जूनागढ़
- भैरू – मनोहर
- नट – घोलजी
- ढोली – मचवाल
- प्रमुख गद्दी – नरवर गढ़ (जयपुर)
- उपवेद – गंधर्ववेद
- शिखा – वाम
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